Raghuveer Sharma
29
रसखान रत्नावली (सवैया -187)
बार ही गोरस बेंचि री आजु तू
माइ के मूढ़ चढ़ै कत मौंड़ी।
आवत जात ही होइगी साँझ भटू
जमुना मतरौंड लौ औंड़ी।
पार गए रसखानि कहै अँखियाँ
कहूँ होहिंगी प्रेम कनौड़ी।
राधे बलाइ ल्लौं जाइगी बाज
अबै ब्रजराज सनेह की डौंड़ी।।
Please login to like this post Click here..
Please login to leave a review click here..
Login Please Click here..
Please login to report this post click here..